काजल की कोठारी जेसे
जिसने भी कदम रखा उसमें
रपटता चला गया |
उसके काले रंग में ऐसा रंगा
रगड़ कर धोने में ही
सारी अकल छट गई
समय की सुई वहीं
अटकी रह गई |
ना नए चहरे ना ही
कुछ नया सोच
वही पुराने अवसरवादी नेता
बेपैदी के लोटे जेसे
कभी इधर कभी उधर होते |
लुढ़कते एक से दूसरी
पार्टी में
जाना नहीं जा सकता
है कैसी मानसिकता
उनकी
क्या उसूल जादू से बदल
जाते हैं |
जब नवीन पार्टी में आए
कुछ नियम अपनाने का
वादा किया
कसमें खाईं
वादे आत्मसात करने की
हवा का रुख बदलते ही
गिरगिट सा रंग बदला |
दिखावे के लिए पूर्ण
रूप से बदले
नया चेहरा उभार कर
आया
जब मुह पर मुखौटा लगाया
एक नए परिवर्तित रूप
रंग में |
यही नेता अब पहचाने
नहीं जाते
नए रंग रूप नए परिवेश में
रंग ढंग सब बदले
उनके इस नए रूप में
बातों में भी है बड़ा
परिवर्तन |
यही है आज के नेता की पहिचान
अपने लिए जीते हैं वर्तमान में
अपने हित को ही
देखने की आदत है
दूसरों के हित की नहीं सोच पाते |
आशा
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जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
हटाएंबहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए शास्त्री जी |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार मीना जी |
👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी क्र लिएअभिलाष जी |
बेहतरीन रचना आदरणीया
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद अनुराधा जी टिप्पणी के लिए |
खूब पोल खोली है आज के नेताओं की जिनका न कोई धर्म है न ईमान और न ही है जनता के दिलों में कोई सम्मान और पहचान !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |