कविता के रूप अनूप मुझे बहुत लुभाते
सुनते ही मन में खुशी बढाते
जब तक पूरी ना हो कोई सुन नहीं पाता
जब तक नया रूप ना हो आनंद नहीं आता
कोई सुनना नहीं चाहता |
कहने को तो कुछ नहीं कविता लिखने में
सतही अर्थ समझने में
पर गूढ़ अर्थ समझना आसान नहीं होता
जिसके अनुभव होते गहन
वे पूरी तरह उसे आत्म सात करते
पूर्ण आनंद लेते यही विशेषता होती जब
लिखना सार्थक हो जाता
श्रोता वक्ता जब एक दूसरे को समझ पाते
कवि सम्मेलन का आनन्द ही कुछ और होता |
आशा सक्सेना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (18-05-2023) को "काहे का अभिमान करें" (चर्चा-अंक 4663) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकविता को समझना आसान नहीं होता ! सुन्दर प्रस्तुति !
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