अथाह सागर है,किनारा दिखाई नहीं देता
बड़ी बड़ी लहरे किनारे पर
जो भी साथ बहता , बहता ही जाता
समुद्र के बीच तक , किनारा ना खोज पाता
आखिर वह घड़ी भी आती
जब भव सागर में वह डूब जाती
सब का अंत होने का यही है
तरीका
शरीर छूटते ही सभी समाप्त हो
जाता |
माया मोह नहीं रहता,सभी
यहीं रह जाता
इसी दुनिया में खाली हाथ आए
थे
अब खाली हाथ चल दिए ,कुछ
साथ नहीं जाता
हमारे कर्मों को ही ,याद
किया जाता |
यदि कर्म कुछ अच्छे रहे ,जीवन
समाप्ति के बाद भी
समय समय पर ,याद किया जाएगा
उन्हें
बरसों तक खाली स्थान ,भर ना पाएगा
यही बात है असाधारण ,दुनिया यूँ ही चलती है |
आशा सक्सेना
दार्शनिक भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति !
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