मन चाहे कितनी भी
मनमानी करे
जीते हारे अपने विचारों में
यह कोई अच्छी बात नहीं |
समाज में रहने से
उसके अनुकूल चलने से
कुछ तो सीखने को मिलता है |
कोई फैक नहीं देता
अपने विचारों को कुछ तो
समाज मान्यता देता है
धीरे धीरे प्रगति की और
अपने आप कदम
बढ़ने लगते हैं
यही क्या कम है|
आशा सक्सेना
सार्थक चिंतन !
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