20 अक्टूबर, 2021

शरद पूर्णिमा


 


                   ओ शरद पूनम के चाँद

 तुम आए ठंडी हवा के साथ

 मैंने खीर का भोग लगाया है   

अमृत वर्षा के लिए है |

 ऐसी है  क्या बात

मिठास दुगुनी हो जाती

मिलते ही रात्रि में

तुम्हारी चांदनी का  साथ |

जाने कितने  रोगों  का

उपचार है तुम्हारे पास

 तुम हो अदभुद चिकित्सक

उन के जिनने सेवन किया प्रसाद

श्वास जैसे मर्ज के लिए |

 सफल  साहित्यिक आयोजन

किये जाते हर वर्ष

 जब तुम आते

नृत्य निशा भी आयोजित होती आज |

गीतों का आनंद ही कुछ और होता

 तुम्हारी छत्र छाया में

सभी मनोयोग से  हिस्सा लेते

इस आयोजन में |

शरद पूर्णिमा की चमक अनोखी

मन मोह रही है

चंद्रमा की रश्मियाँ झलक रही हैं

मौसम रंगीन हुआ है आज |

आशा

 

 


5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    आलोक जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |

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  2. वाह ! शरद पूर्णिमा के उत्सव आयोजन की मनोरम झाँकी ! चाँदनी के स्पर्श से दुगुनी मधुर हुई खीर का तो स्वाद ही अनुपम होता है ! बहुत सुन्दर रचना !

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