पहले मुझे समुन्दर बहुत भाता था ,
बार बार अपनी ओर खींच ले जाता था ,
देख लहरों का विकराल रूप
मैं भूल गई वह छटा अनूप ,
जो कभी खींच ले जाती थी ,
समुन्दरी लहर मुझे बहुत सुहाती थी |
पर एक दिन सुनामी का कहर ,
ले गया कितनों का सुख छीन कर ,
और भर गया मन में अजीब सा डर ,
अब नहीं मचलता मन उसे देख कर |
आशा
Very good poem indeed. All the terrifying memories of Sunami refreshed in the mind after reading this poem.
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