अगना बुहारा
द्वार झाड़ा पोंछा
पूजा की थाली सजाई
श्री राम जी के स्वागत के लिए|
थाल में दीपक सजाए
आरती के लिए
तेल लिया बाती डाली दीपक मैं
फिर उसे चौक पर रखा
प्रज्वलित किया
आराधना के लिए .
दीपक की लौ तेज हुई
ऊंचाई छूने लगी
अद्भुद छवि दिखी मंदिर में |
एक बात दिखाई दी
दिए के नीचे
कोई रौशनी न थी
घना अन्धेरा था
सोचा यह कैसे हुआ पर
इसका कोई जबाब न
था
देखा दीप शिखा की चमक में
कोई कमीं न थी |
वायु के घटते बढ़ते वेग से
दीप शिखा ने नर्तन किया
जब वायु वेग बढ़ा
दीप शिखा तेज हो कर विलुप्त हुई
फिर अन्धकार हुआ वह
कहाँ गई कोई जान न सका
उसका अभाव देख
मन को कष्ट हुआ
फिर से दीप जलाए न गए
भय था वायु वेग के आने का |
आशा सक्सेना
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