14 जनवरी, 2024

दीप शिखा

 

अगना बुहारा

द्वार झाड़ा पोंछा

पूजा  की थाली सजाई

श्री राम जी के स्वागत के लिए|

थाल में दीपक सजाए

 आरती के लिए

 तेल लिया बाती डाली दीपक मैं

फिर उसे  चौक पर रखा

 प्रज्वलित किया 

आराधना  के लिए .

दीपक की लौ  तेज हुई

 ऊंचाई छूने लगी

अद्भुद छवि दिखी मंदिर में  |

 एक बात दिखाई दी

 दिए के  नीचे

कोई रौशनी न थी 

घना अन्धेरा  था

सोचा यह कैसे हुआ पर 

इसका कोई जबाब न था

देखा  दीप शिखा की चमक में

 कोई कमीं न थी |

वायु के घटते बढ़ते वेग से

 दीप शिखा ने नर्तन किया

जब वायु वेग बढ़ा

 दीप शिखा तेज हो कर विलुप्त हुई

फिर अन्धकार हुआ वह 

 कहाँ गई कोई जान न सका

 उसका अभाव देख 

 मन को  कष्ट हुआ 

फिर से दीप जलाए न गए

 भय था वायु वेग के आने  का | 

आशा सक्सेना  

        

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