जीवन में असंतुलन हर समय रहा
कभी ठहराव नहीं आया
मैंने कोशिश भी की
ट्रेन पटरी पर नहीं आई |
इससे बेचैनी अधिक बढी
दर्द बढ़ता गया
सुधार उसमें ना आया
किसी ने कहा आध्यात्म का सहारा लो
जिसे कभी करने का मन न हुआ
यह भी न कर सकी
पर मन पर नियंत्रण करने की ठानी
इस में सफल हुई
तब देखा द्वार पर डोली खड़ी हैं
मुझे राम घर ले जाने के लिए |
जैसे ही डोली को देखा
मन खोया राम में
मैं ने जीवन को सफल पाया
अपने को राम का आश्रित पाया
आशा सक्सेना
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