बहुत वेदना होती है
जब शब्दों के तरकश से
अपशब्दों के बाण निकलते हैं
अंतिम बाण न चले जब तक
मन को शान्ति नहीं मिलती |
जब नियंत्रण वाणी पर न हो
अनर्गल प्रलाप बढ़ने लगे
मन छलनी होता जाता फिर भी
कोई हल नहीं निकल पाता |
तन की पीर सही जा सकती
घाव गहरा हो तब भी भर जाता
पर तरकश से निकला तीर
फिर बापिस नहीं आता
जब निशाना चूक नहीं पाता
और भी विकृत रूप धारण कर लेता
|
बहुत वेदना होती है जब
अपने ही पीठ पर वार करें
झूठ का सहारा लेकर शब्दों का प्रहार करें
अपना कष्ट तो समझें पर औरों का नहीं
केवाल अपना ही सोचें अन्य को नकार दें |
गहन वेदना होती है जब अपशब्दों का प्रयोग
सीमा पार करे बड़े छोटे का अंतर भूले
व्यर्थ की बकवास करे खुद को बहुत समझे
अनर्गल बातों को तूल दे
अन्य
सभी को नकार दे |
आशा
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना के लिए आभात सर |
कटु यथार्थ को शब्दांकित करती सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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