उनकी आँखों से पैगाम
मिला है
मेरी निगाहों को श्रंगार मिला
है
कहीं धुल न जाए काजल
प्रिया का अक्स उसमें छिपा है |
कितनी कोशिश की है नयनों को सजाने
में
बहुत प्यार से उसके अक्स को सजोने में
तब ही तो भय लगता रहता है
कहीं सुनामी उसे बहा न ले जाए
|
वह रूप की रक्षा में सदा सजग रहता
बचपन में माँ का आशीष बन दिठोने में लगता
जब से मैं बड़ा हुआ सीने पर
माँ उसे लगाती
कहती बुरी नजर से यही रक्षा करता |
प्रिया के सन्देश का वाहक बन काजल
मुझे अब प्रिय लगाने लगा है
बहुत इंतज़ार रहता है जब देर कहीं हो जाती है
मन में किसी अनिष्ट का भान कराती है |
सुनामी बहुत बेहाल कराती है उससे कैसे बचूं
कोई हल नहीं सूझ रहा बेचैन कर
रहा मुझे
पैगाम की रक्षा न की तो बेवाफाई होगी
उसकी रक्षा में छिपी है मेरी सारी वफा |
आशा
सन्देश का वाहक बन काजल. .
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब लिखा है काजल स्नेह और डर के बीच चमकता काजल।
धन्यवाद गुरमिंदर सिंह जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंशुक्रिया जी
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 23 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नीतीश जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसूचना हेतु आभार सहित धन्यवाद अनीता जी |
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए अनुराधा जी |
हटाएंधन्यवाद अनुराधा जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंवाह ! काजल की बहुरंगी भूमिका को व्याख्यायित करती बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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