23 फ़रवरी, 2020

काजल

                                 



                                     उनकी आँखों से पैगाम मिला है
 मेरी निगाहों को श्रंगार मिला है
कहीं धुल न जाए काजल
प्रिया का अक्स उसमें छिपा है |
कितनी कोशिश की है  नयनों को सजाने में
बहुत प्यार से उसके अक्स को  सजोने में
तब ही तो भय लगता रहता है
कहीं सुनामी  उसे बहा न ले जाए |
वह रूप की रक्षा में सदा सजग रहता
बचपन में माँ का आशीष बन  दिठोने में लगता
जब से मैं  बड़ा हुआ सीने पर माँ  उसे लगाती
कहती बुरी नजर से यही रक्षा करता |
 प्रिया के  सन्देश का वाहक बन काजल  
मुझे अब   प्रिय लगाने लगा है
बहुत इंतज़ार रहता है जब देर कहीं हो जाती है
मन में किसी अनिष्ट का भान कराती है |
सुनामी बहुत बेहाल कराती है उससे कैसे बचूं
कोई हल नहीं सूझ रहा  बेचैन कर रहा मुझे
पैगाम की रक्षा न की तो बेवाफाई होगी
उसकी रक्षा में छिपी है मेरी सारी वफा |
आशा  

13 टिप्‍पणियां:

  1. सन्देश का वाहक बन काजल. .
    वाह बहुत खूब लिखा है काजल स्नेह और डर के बीच चमकता काजल।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 23 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता।

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  4. सूचना हेतु आभार सहित धन्यवाद अनीता जी |

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  5. धन्यवाद अनुराधा जी टिप्पणी के लिए |

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  6. वाह ! काजल की बहुरंगी भूमिका को व्याख्यायित करती बहुत सुन्दर रचना !

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