है दिल छोटा सा फिर भी
रिक्त अभी भी हैं पर्ण पुस्तिका में
बीते कल की यादों को
सहेजा जा सकता है जिनमें |
लेखनी भी थकी नहीं है
यादों को लिपिबद्ध करने में फिर भी
उम्र दिखाई देने लगी है
उस की रवानी में |
कभी चलते हुए जब थक जाती है
विश्राम करना चाहती है
यादें उसे पीछे हटने नहीं देतीं
बारम्बार लिखने को कहती है |
बड़े मनुहार के बाद लेखनी
कदम अपने बढ़ाना चाहती है
कोशिशों की बैसाखी ले कर चलती है
पर वह प्रखरता अब कहाँ |
ह्रदय में जगह की कमी नहीं है
लिखने को अंतस में पैनी लेखनी चाहिए
यादों का जखीरा रहा शेष लिपिबद्ध करने के लिए
पुरानी लेखनी से लिखने वाला चाहिए |
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभाई
हटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी
कोशिशों की बैसाखी ले कर चलती है
जवाब देंहटाएंपर वह प्रखरता अब कहाँ |
ह्रदय में जगह की कमी नहीं है
लिखने को अंतस में पैनी लेखनी चाहिए...
सत्य लिखा है आपने इन पंक्तियों में । आज जब पढता हूँ तो वही पैनापन महसूस नहीं होता है।
साधुवाद ।
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |
लेखनी भी थकी नहीं है
जवाब देंहटाएंयादों को लिपिबद्ध करने में फिर भी
उम्र दिखाई देने लगी है।
सटीक रचना दीदी।
धन्यवाद मीना जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंलेखनी भी थकी नहीं है
जवाब देंहटाएंयादों को लिपिबद्ध करने में फिर भी
उम्र दिखाई देने लगी है।
सटीक रचना दीदी।
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद मीना जी |
वाह ! बहुत सुंदर रचना ! क्या बात है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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