त्राहि त्राहि मच रही है
इस सर्दी के मौसम में
पतंग तक उड़ा नहीं पाते
ना ही गुल्ली डंडा खेलते |
घर में दबे महामारी के भय से
जैसे ही कोई मित्र आए
मम्मी को पसंद नहीं आता
वह इशारे से मना कर देती |
छत पर जाने को पतंग उड़ाने को
रंगबिरंगी पतंग काटने को
मन मसोस कर रह जाते
सोचा इस वर्ष नहीं तो क्या आगे जीवन पड़ा है|
अभी बचपन नहीं गया है
पर मन में खलिश होती रही
सारा त्योहार ही बिगड़ गया
कुछ भी आनंद न आया |
पतंग नहीं उड़ाने में
तिल गुड़ खिचड़ी खाने में
ना गए मिलने मिलाने किसी से
रहे घर में ही कोरोना से बचने के लिए |
यही मन में रहा विचार
सरकारी नियम पालना है जरूरी
समाज में रहने के लिए
अपने को निरोगी रखने के लिए |
आशा
भीड़ में जाना मना है लेकिन अपने घर की छत पर अकेले पतंग उड़ाने में क्या बाधा है ? अकेले अपनी छत से खूब पतंग उड़ायें ! दूसरों की पतंग भी काटें और जम के त्यौहार मनाएं ! मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाएं |
हटाएंआभार सहित धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए |
इस महामारी ने हमे अपने त्यौहार भी सही से नहीं मानने दिए, आज की स्थिति का सही बखान करती रचना, लोहड़ी की बहुत-बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभीर सहित धन्यवाद हरीश जी टिप्पणी के लिए |आपको भी मकर संक्रांति और लोहड़ी पर्व के लिए बहुत बहुत बधाई सपरिवार |
कोरोना का यह अंतिम साल है, अगले बरस से सब सामान्य हो जाएगा
जवाब देंहटाएंThanks for the comment anita ji
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