16 फ़रवरी, 2022

चंद पंक्तियाँ कविता की

 


कविता की चन्द पंक्तियाँ

करतीं बेचैन मन उलझी लटों सी

कहने  को है चंद पंक्तियाँ

पर बड़ा है पैना वार उनका  |

खुले केश हों और उलझी लटें

फिर क्या कहने उनके

सुलझाए न सुलाझतीं

समय की कीमत न समझतीं |

मुझे यह बात  उलझाए रखती

आखिर कैसे यह गुत्थी सुलझे

अधिक समय व्यर्थ न हो

इतने जरासे काम में 

जब भी कोशिश करती सुलझाने की 

और अधिक ही उलझन होती 

खीचातानी के सिवाय बात न बनाती 

जैसे ही बात बनती 

 एक नई कविता जन्म लेती |

आशा 


2 टिप्‍पणियां:

  1. खुद को समझ लेना ! अपनी कमियों को स्वीकार कर लेना और कुछ श्रेष्ठ सृजन के लिए दृढ़ संकल्प रखना बहुत सुन्दर विचार हैं !

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