इस छोटे से जीवन के लम्हें
अपनी यादे छोड़ जाते
वे होते संचित धन जीवन के
कोई नहीं बचता जिससे |
होती यादें वेशकीमती अनमोल
कोई इन्हें भुलाना न चाहता
हैं एकांत बिताने की प्यारी सी सामग्री
कई सलाहें शिक्षाएं समाहित होतीं इन में |
फिर रिक्तता नहीं रहती जीवन में
जब जीवन के अंतिम पड़ाव पर ठहरते
या होते अपनों से दूर उन्हें याद करते
यादों में सब धूमते रहते आसपास |
कभी एहसास तक न होने देते
कहाँ गलती हुई हम से
यदि यही सब जानते आत्म मंथन करते
कठिनाइयां सरलता से सुलझ पातीं |
क्षमा मांगते अपनी भूलों का करते आकलन सीमाएं अपनी जान अपनी हद में रहते
असामाजिक न होते किसी से बैर न पालते
हमारी भी खुशहाल जिन्दगी होती |
यही धरोहर पीढ़ियों तक चलती
भूलें जो हमसे हुईं आने वाली पीढ़ी न करती
हम ऐसी शिक्षा देते कि
अनुकरण की मिसाल बनते
वर्षों तक याद किये जाते |
आशा
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात धन्यवाद टिप्पणी के लिए आलोक जी |
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4344 में दिया जाएगा| ब्लॉग पर आपकी आमद का इंतजार रहेगा|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ज्योति जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार रविन्द्र जी मेरी रचना को आज के पांच लिंकों का आनंद अंक में स्थान देने की सूचना के लिए |
यदि यही सब जानते आत्म मंथन करते
जवाब देंहटाएंकठिनाइयां सरलता से सुलझ पातीं |
वाक़ई आत्म मंथन बहुत ज़रूरी है
Thanks for the comment ji
हटाएंआत्म-मंथन से सुलझती हैं क्ई उलझनें, हल होते हैं मसले ।
जवाब देंहटाएंअच्छी बात याद दिलाई आपने ।
Thanks for the comment ji
हटाएंइंसान से भूलें होना स्वाभाविक है ! उन भूलों को सुधारना आवश्यक है ! उनका गहन अध्ययन कर उन्हें ठीक किया जा सकता है ताकि आगे की राह आसान हो जाए !
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