गुमसुम बैठी उदास
अकारण क्रोध की आंधी
पूरा धर हिला जाती
पर कारण खोज न पाती
कितनी बार खुद को टटोला
रहा अभियान नितांत खोखला
कारण की थाह न पाई
खुद की कमीं नजर न आई
हूँ वही जो कभी खुश रहती थी
कितनी भी कडवाहट हो
गरल सी गटक लेती थी
उसे भुला देती थी
पर अब बिना बात
उलझाने लगती
कटुभाषण का वार
अनायास उन पर
जिनका दूर दूर तक
अनायास उन पर
जिनका दूर दूर तक
कोइ भी न हो वास्ता
बाध्य करता सोचने को
हुआ ऐसा क्या की
अनियंत्रित मन रहने लगा
कटुभाषण हावी हुआ
बहुत सोचा तभी जाना
अक्षमता शारीरिक
मन पर हावी हुई
असंतोष का कारण हुई |
आशा
बेहद भावपूर्ण प्रस्तुति खूबसूरत अंदाज बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंअरुन शर्मा - www.arunsblog.in
बेहतरीन! बहुत कुछ कहती हुई रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : प्यार न भूले,,,
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंकहावत भी है 'कम कुव्वत रिस ज़्यादा' ! जब शरीर में ताकत कम हो हर बात पर चिड़चिड़ाहट होती है !
जवाब देंहटाएंस्वस्थ और खुश रहने की कोशिश करनी होगी तभी असंतोष भी कम होगा ! सुंदर प्रस्तुति !
गुस्सा बड़ा खराब है, कर देता हलकान।
जवाब देंहटाएंठण्डे डल का पान कर, मेटों सकल थकान!!
शारीरिक अस्वस्थता अक्षमता ही इन सब कारणों की जननी है कारणों से सोच बदलती है सोच से वाणी बदलती है --बहुत भावपूर्ण रचना शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंमनोवैज्ञानिक आधार है-लाचारी और कमज़ोरी में अपने पर से वश अक्सर खो जाता है .
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जवाब देंहटाएंबढ़िया विश्लेषण मन की गति बड़ी विचित्र है .
bhaw se paripurn...
जवाब देंहटाएंpratibha jee ne sach kaha...
असल बात है व्यक्ति का मूल स्थाई स्वभाव जिसका निर्धारण आसपास के साथ परस्पर लेन देन से तय होता है .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भाव
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