अपनों से जब तक
बिछुड़ा न था
अपूर्व आभा लिए था
आकृष्ट सभी को करता |
महक चहु दिश फैलाता
अहसास अपने होने का
खोने न देता था
क्यूं कि वह सुरक्षित था |
जब डाली से बिछुड़ा
गुलदस्ते में सजा
भेट प्रेम की चढ़ा
कुम्हलाया, ठुकराया गया
सब कुछ बिखर कर रह गया |
अब ना वह था
ना ही महक उसकी
सब कुछ अतीत में
सिमट कर रह गया |
थी जगह धरती उसकी
जीवन धुँआ धुँआ हुआ
गुबार उठा ऊपर चढा
अनंत में समा गया |
अब न था अस्तित्व
ना खुशबू ना ही आकर्षण
बस थी धुंधली सी याद
उसके क्षणिक जीवन की |
पुष्प का जीवन भले ही क्षणिक हो लेकिन अल्प समय में ही अपने सौन्दर्य, सौरभ एवं
जवाब देंहटाएंदर्शन से जिस अनुपम आनंद की वह सृष्टि करता है उसका सुख अपरिमित होता है ! बहुत सुन्दर रचना !
आपकी टिप्पणी बड़ी सटीक होती हैं |
हटाएंपुष्प के क्षणिक जीवन में भी वह खुशबु फैलाकर जाता है क्योकि वह जानता था हर हाल में उसे मुरझाना ही है \
जवाब देंहटाएंlatest post: कुछ एह्सासें !
धन्यवाद कालीपद जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंआशा
पुष्प की विडंबना है ... उसका जीवन ऐसे ही है पर पल भर में वो अपना एहसास करा जाता है ...
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद नासवा जी |
हटाएंआपकी यह रचना कल बुधवार (09-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 141 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंएक नजर मेरे अंगना में ...
''गुज़ारिश''
सादर
सरिता भाटिया
सूचना हेतु धन्यवाद सरिता जी
हटाएंमन को प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अपनी राम कहानी में.
टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंआशा
पुष्प की तरह है मानव जीवन भी क्षण भंगुर है ..बस मानव को भरम में जीता है की वह हमेशा रहेगा ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..
धन्यवाद टिप्पणी हेतु कविता जी
हटाएंमार्मिक प्रस्तुति - बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंसूचना हेतु धन्यवाद दर्शन जी
जवाब देंहटाएं