दिल बहका मन महका
झुकी डालियाँ देखीं जब फुलवारी में
फलते फूलते पुष्पों से भरी
पुष्पों के भार से दबी उन टहनियों में |
प्रातः काल की बेला में जब
मंद वायु के झोंकों ने
उन्हें जगाया झझकोर कर
झुलाया मन से बहुत स्नेह से |
आदित्य की रश्मियों ने धीरे से
सहलाया अधखिले फूलों को
कब प्रस्फुटित हुए वे जान न पाए
लम्हां था हसीन यादों में सिमटा |
अब नित्य का नियम बन गया
उस बगिया में भ्रमण को जाने का
खिलते पुष्पों के संग मंद वायु में
खिलखिलाने का सूर्योदय का आनंद उठाने का |
एक दिवस तेज हवा का झोका आया
उसने पूरी क्षमता से डालियों को हिलाया
वायु के वार वे सह न सकीं
फूल झरने लगे वे सूनी होने लगीं |
अब वीरान हुई बगिया
तितली भ्रमर पुष्प नहीं थे
मनोरम न लगे हरियाली बिना दृश्य वहां के
सूनी हुई बगिया बिना रंगबिरंगे पुष्पों के |
सूखे पत्तों का साम्राज्य हुआ बागीचे में
अब शबनमी मोती कहाँ हरी पत्तियों पर
ना ही रश्मियों की लुकाछिपी होती रही ओस से
फिर भी थी हरियाली गुलमोहर के वृक्ष पर |
हो प्रकृति से दूर भ्रमण में आनंद न आया
मौसम के बदलाव ने मन को कष्ट पहुंचाया
पर सब मौसम परिवर्तन के नियम से बंधे थे
कुछ भी हाथ में न था मौसम बदल रहा था |
आशा
बहुत ही अच्छी अच्छी पंक्तियाँ लिखी है अपने। धन्यवाद। Zee Talwara
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंमधुमास के बाद पतझड़ का आना तय है लेकिन निश्चित अवधि के बाद मधुमास फिर आता है फूल फिर खिलते हैं ! यही तो प्रकृति का नियम है ! सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |