21 सितंबर, 2021

बदला मौसम


 

दिल बहका मन महका

झुकी डालियाँ देखीं जब फुलवारी में

फलते फूलते पुष्पों से भरी

पुष्पों के भार से दबी उन टहनियों में   |

प्रातः काल की बेला में जब

मंद वायु के झोंकों ने

उन्हें जगाया  झझकोर कर

 झुलाया मन से बहुत स्नेह से |

आदित्य की रश्मियों ने धीरे से

सहलाया अधखिले फूलों को

कब प्रस्फुटित हुए वे  जान न पाए

 लम्हां था हसीन यादों में सिमटा |

अब नित्य  का नियम बन गया  

उस बगिया में  भ्रमण को जाने का 

खिलते पुष्पों के संग मंद वायु में

खिलखिलाने का सूर्योदय का आनंद उठाने का  |

एक दिवस तेज हवा का झोका आया

उसने पूरी क्षमता से डालियों को हिलाया

वायु के वार वे सह न सकीं

फूल झरने लगे वे सूनी होने लगीं |

अब वीरान हुई बगिया

 तितली भ्रमर पुष्प नहीं थे  

मनोरम न लगे हरियाली बिना दृश्य वहां के

सूनी हुई बगिया  बिना रंगबिरंगे  पुष्पों के |

सूखे पत्तों का साम्राज्य हुआ बागीचे में

अब शबनमी मोती कहाँ  हरी पत्तियों पर

ना ही रश्मियों की लुकाछिपी होती रही ओस से

फिर भी थी हरियाली गुलमोहर के वृक्ष पर |

हो प्रकृति से दूर भ्रमण में आनंद न आया

मौसम के बदलाव ने मन को कष्ट पहुंचाया  

पर सब मौसम परिवर्तन के नियम से बंधे थे

कुछ भी हाथ में न था मौसम बदल रहा था |

आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छी अच्छी पंक्तियाँ लिखी है अपने। धन्यवाद।  Zee Talwara

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  2. मधुमास के बाद पतझड़ का आना तय है लेकिन निश्चित अवधि के बाद मधुमास फिर आता है फूल फिर खिलते हैं ! यही तो प्रकृति का नियम है ! सुन्दर सृजन !

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  3. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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