काले कजरारे भूरे बादल
तुम जाना काली दास की नगरी में
जहां से मैं आया हूँ |
मालव प्रदेश मुझे ऐसा भाया
जिसे मैं भूल न पाया
वहां के दृश्य मनोरम
है हरियाली चहु ओर |
जब उस प्रदेश से गुजरोगे
मंद गति से बहती पवन
सहलाएगी तन मन
सुहाना मौसम करेगा आकृष्ट तुम्हें भी |
चाहोगे अपना बसेरा बनाना वहां
अवन्तिका में क्षिप्रा स्नान कर देव दर्शन करोगे
महाकाल दर्शनार्थ पहुँचते लोग मिलेंगे
पक्षी कलरव करते होंगे प्रातःकाल की बेला में |
रवि रश्मियाँ अंगड़ाइयां ले कर
जागेंगी अपनी आभा बिखेरेंगी
सातों रंग भरेंगी प्रकृति में
मन मोहक छवि उभरेगी नयनों में |
रात में लुकाछिपी चंद्र और तारों से
नदिया के जल से क्रीड़ा करेंगी
दिन में राह दिखाएंगी आदित्य को
जो निकलता होगा देशाटन को |
आशा
कालीदास के मेघदूत की याद आ गयी ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार साधना |
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार मीना जी |
बहुत ही सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
सादर।
Thanks for the comment
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