कच्ची सड़क पर लगे पैर में कंटक
निकाल भी लिए
जो दर्द हुआ सह भी लिया |
पर हृदय में चुभे
शूल को निकालूँ कैसे
उसके दंश से बचूं कैसे |
जब हो असह्य वेदना
बहते आंसुओं के सैलाव को
रोकूं कैसे |
इस दंश का दर्द
जीवन पर्यन्त होना है
कैसे मुक्ति पाऊं उससे |
बिना हुए चोटिल
दोधारी तलवार पर चलना
और बच पाना उससे
होता है बहुत कठिन
पर असम्भव भी नहीं |
शायद वह भी सहन कर पाऊं
धरा सा धीरज रख पाऊं
और मुक्ति मार्ग पर चल पाऊं
बिना कोई तनाव लिए |
आशा
निकाल भी लिए
जो दर्द हुआ सह भी लिया |
पर हृदय में चुभे
शूल को निकालूँ कैसे
उसके दंश से बचूं कैसे |
जब हो असह्य वेदना
बहते आंसुओं के सैलाव को
रोकूं कैसे |
इस दंश का दर्द
जीवन पर्यन्त होना है
कैसे मुक्ति पाऊं उससे |
बिना हुए चोटिल
दोधारी तलवार पर चलना
और बच पाना उससे
होता है बहुत कठिन
पर असम्भव भी नहीं |
शायद वह भी सहन कर पाऊं
धरा सा धीरज रख पाऊं
और मुक्ति मार्ग पर चल पाऊं
बिना कोई तनाव लिए |
आशा
असम्भव भी नहीं |
जवाब देंहटाएंशायद वह भी सहन कर पाऊं
धरा सा धीरज रख पाऊं
और मुक्ति मार्ग पर चल पाऊं
बिना कोई तनाव लिए |
अत्यंत गहन भाव --
यही जीवन है -
मुस्कुराते हुए जीना ही विजय है ....!!
बहुत सुंदर रचना -
बधाई एवं शुभकामनाएं .
शायद वह भी सहन कर पाऊं
जवाब देंहटाएंधरा सा धीरज रख पाऊं
और मुक्ति मार्ग पर चल पाऊं
बिना कोई तनाव लिए |
बहुत गहन भाव लिये सुन्दर प्रेरक रचना..
बहुत खूबसूरत लिखा है आपने इसके लिए मई यही कहूँगा
जवाब देंहटाएं"जिंदगी तो जिंदगी है 'विद्यार्थी'
खुशी कि हो
या गम की,
सूखे की हो
या नम की,
अधिक की हो
या कम की,
सबसे एक ही शब्द निकलता है
चाह!"
दर्द को झेलने की प्रेरणा देती एक सार्थक एवं सकारात्मक रचना ! बहुत सुन्दर ! वाकई हौसला और इच्छाशक्ति हो तो असंभव कुछ भी नहीं !
जवाब देंहटाएंदर्द जब हद से अधिक बढ़ जाता है तो दवा बन जाता है |
जवाब देंहटाएंदिल के दर्द को स्पर्श करती हुई रचना|
सकारात्मक सोच लिए अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंaSHA JEE AP mahan maMTA maNDAL MEN SHAMIL HONE KE LIYE IS LINK KO OPEN KAREN :::
जवाब देंहटाएंAllindiabloggersassociation.blogspot.com
AUR YAHAN APNA EMAIL DARJ KAREN:::
http://www.blogger.com/comment.g?blogID=554106341036687061&postID=7063793989385356216&isPopup=true
आदरणीया अम्मा आशा जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम !
आशा है ,आप स्वस्थ-सानन्द हैं …
हृदय में चुभे
शूल को निकालूं कैसे ?
उसके दंश से बचूं कैसे ?
जब हो असह्य वेदना
बहते आंसुओं के सैलाव को
रोकूं कैसे ?
आपके शब्द आंखों और हृदय को नम कर गए …
मन के घाव आसानी से नहीं भरते …
दोधारी तलवार पर चलना
और बच पाना उससे
होता है बहुत कठिन
पर असम्भव भी नहीं …
शायद वह भी सहन कर पाऊं
धरा सा धीरज रख पाऊं
और मुक्ति मार्ग पर चल पाऊं
एक पुराना गीत याद आ रहा है …
धरती की तरह हर दुःख सहले ,
सूरज की तरह तू जलती जा …
आपके जीवन में भरपूर सुख , हर्ष , प्रसन्नता , और संतुष्टि हो … तथास्तु !
आगामी होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
साथ ही चार दिन पहले आ'कर गए
विश्व महिला दिवस की हार्दिक बधाई !
शुभकामनाएं !!
मंगलकामनाएं !!!
♥मां पत्नी बेटी बहन;देवियां हैं,चरणों पर शीश धरो!♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार
गहन भाव लिये सुन्दर प्रेरक रचना