12 मार्च, 2011

मेरी आँखों में बस गया है



मेरी आँखों में बस गया है
वह प्यारा सा भोला चेहरा
जो चाहता था ऊपर आना
पर चढ़ नहीं पाता था |
अपनीं दौनों बाहें पसार
लगा रहा था गुहार
जल्दी से नीचे आओ
मुझे भी ऊपर आना है
अपने साथ ले कर जाओ |
सूरज के संग खेलूंगा
चिड़ियों से दोस्ती करूँगा
दाना उन्हें खिलाऊंगा
फिर अपने घर ले जाऊंगा |
जब में बक्सा खोलूँगा
खिलौनों की दूकान लगा दूंगा
जो भी उन्हें पसंद होगा
वे सब उन्हें दे दूंगा |
उसकी भोली भाली बातें
दया भाव और दान प्रवृत्ति
देख लगा बहुत अपना सा
एक भूले बिसरे सपने सा |
वह समूह में रहना जानता है
पर उसकी है एक समस्या
अकेलापन उसे खलता है
घर में नितांत अकेला है |
माँ बापू की है मजबूरी
उस पर ध्यान न दे पाते
उसे पडोस में छोड़ जाते
जब भी वह देखता है
अपने पास बुलाता है |
अब तो खेल सा हो गया है
टकटकी लगा मैं
उसका इन्तजार करती हूँ
जैसे ही दीखता है
गोद में उठा लेती हूँ |
उसके चेहरे पर
भाव संतुष्टि का होता है
उस पर अधिक ही
प्यार आता है |
आशा





9 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा दी ,
    बहुत सुन्दर भाव । दोनों का ही अकेलापन बेहद मुखर हो रहा है ।

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  2. वात्सल्य से परिपूर्ण एक मीठी सी रचना ! बहुत सुन्दर !

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  3. Aasha ji,naman karta hun.Aapki ye rachna mujhe apne bachpan ke sapno ki yaad dilati rahi...shayad mere bheetar abhi bhi wo bachha kilak raha hai.Shatshah dhanyavaad uss yaad ko taza karane ko...bahut hi Bhavpoorn panktiyan hai.
    Aahladit hua.

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  4. बच्चे तो होते ही ऐसे हैं ... मन मोह लेते हैं ...

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  5. बाल सुलभ चंचलता से ओतप्रोत कविता|

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