14 मार्च, 2011

यथार्थ





काल चक्र अनवरत घूमता
रुकने का नाम नहीं लेता
है सब निर्धारित कब क्या होगा
पर मन विश्रान्ति नहीं लेता |
एकाएक जब विपदा आए
मन अस्थर होता जाए
तब लगता जीवन अकारथ
फिर भी मोह उससे कम नहीं होता |
प्राकृतिक आपदाएं भी
कहर ढाती आए दिन
बहुत कठिन होता
सामना उनका करना |
कोई भी दुर्घटना हो
या प्राकृतिक आपदा हो
कई काल कलवित हो जाते हैं
अनेकों घर उजाड जाते हैं |
जन धन हानि के दृश्य
मन में भय भर देते हैं
तब जीवन से मोह
व्यर्थ लगता है |
धन संचय या प्रशस्ति
लोभ माया का
या हो मोह खुद से
सभी व्यर्थ लगने लगते हैं |
भविष्य के लिए सजोए स्वप्न
छिन्न भिन्न हो जाते हैं
होता है क्षण भंगुर जीवन
यही यथार्थ समक्ष होता है |

आशा



8 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
    बहुत सुन्दर और प्रेरक

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  2. क्षणभंगुर जीवन -
    यही यथार्थ समक्ष होता है -
    सत्य दर्शाती रचना |

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  3. जीवन की क्षण भंगुरता को दर्शाती एक प्रभावशाली प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  4. सत्य का दर्शन कराती बहुत सशक्त रचना...बहुत सुन्दर

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  5. काल के आगे ही इंसान बेबस है अन्यथा उसे भी रिश्वत देकर अपने बस में कर लेता | यथार्थवादी रचना |

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  6. jeevan-darshan se saakshaatkaar
    karvaati huee
    naayaab kriti ...

    abhivaadan svikaareiN .

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  7. दुनिया का सबसे बड़ा यथार्थ लिख दिया आपने

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