दुनिया कल्पना की ,
स्वप्नों की ,
होती है खोखली
है प्रेम डगर
काँटों से भरी ,
सोचते दिमाग से
सोचते दिमाग से
दिल लगाने से पहले |
इसी चेहरे पर ,कई मुखौटे लगाए
उतारते गए उन्हें
कपड़ों की तरह
अपने सपने साकार
करने के लिये |
पहले था विश्वास ख़ुद पर
वह भी डगमगाने लगा
यथार्थ के सत्य
जान कर |
समझते थे खुद को
सर्व गुण संपन्न ,
वे गुण भी गुम हो गए
कठिन डगर पर चलके |
सम्हल भी ना पाए थे
सोच भी अस्पष्ट था
कि बढ़ती उम्र ने दी दस्तक
जीवन के दरवाजे पर |
सारी फितरत भूल गए
बस रह गए
कोल्हू का बैल बन कर
सारे सपने बिखर गए
प्रेम की डगर
पर चल कर |
चिंताएं घर की बाहर की
प्रति दिन सताती हैं
प्रेम काफूर हो गया है
कपूर की तरह |
बस ठोस धरातल
रह गया है
गाड़ी जिंदगी की
खींचने के लिए |
आशा
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
इसी चेहरे पर ,
उतारते गए उन्हें
कपड़ों की तरह
अपने सपने साकार
करने के लिये |
......कटु सत्य प्रभावशाली प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !
कोल्हू का बैल बन कर
जवाब देंहटाएंसारे सपने बिखर गए
प्रेम की डगर
पर चल कर |
चिंताएं घर की बाहर की
प्रति दिन सताती हैं
प्रेम काफूर हो गया है
कपूर की तरह |
बस ठोस धरातल
रह गया है
गाड़ी जिंदगी की
खींचने के लिए |
हम जैसों का सत्य ..अपनी सी लगी यह रचना ..
सम्हल भी ना पाए थे
जवाब देंहटाएंसोच भी अस्पष्ट था
कि बढ़ती उम्र ने दी दस्तक
जीवन के दरवाजे पर |
सारी फितरत भूल गए
बस रह गए
कोल्हू का बैल बन कर..
यही जीवन का कटु सत्य है...बहुत संवेदनशीलता से उकेरा है आपने रचना में..बहुत सुन्दर
जीवन का कड़वा सत्य दर्शाती रचना |यही यथार्थ है बाकी सब मोह है |
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना/
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना ! इसी काँटों भरी डगर का नाम जीवन है ! यहाँ स्वप्न और जागृति में तथा कल्पना और यथार्थ में ज़मीन आसमान का अंतर होता है ! सुन्दर रचना के लिये बधाई एवं होली की शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन रचना के लिए शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंबस ठोस धरातल
जवाब देंहटाएंरह गया है
गाड़ी जिंदगी की
खींचने के लिए |
bahut umdaa !