16 मार्च, 2011

वह जड़ सा हो गया


बदलता मौसम
बेमौसम बरसात
अस्त व्यस्त होता जीवन
फसलों पर भी होता कुठाराघात |
इस बूंदा बांदी से
कई मार्ग अवरुद्ध हो गए
मानो जाम लगा सड़कों पर
बंद के आवाहन से |
अल्प वर्षा या अति वर्षा
या कीटों के संक्रमण से
सारी फसल चौपट हो गयी
गहरा दर्द उसे दे गयी |
जब ऋण नहीं चुका पाया
मृत्यु के कगार तक आया
बड़ी योजनाओं के लाभ
चंद लोग ही उठा पाए |
बचत या अल्प बचत
या आधे पेट खा बचाया धन
जब मंहगाई की मार पड़ी
सारी योजना ध्वस्त हो गयी |
जाने कितने बजट आए
और आ कर चले गए
ना तो कोई उम्मीद जगी
ना ही राहत मिल पाई |
मुद्रा स्फीति की दर ने भी
अधिक ही मुंह फाड़ा
सब ने हाथ टेक दिए
विकल्प ना कोई खोज पाए |
मंहगाई और बढ़ गयी
बेरोजगार पहले से ही था
असह्य सब लगने लगा
और वह जड़ सा हो गया |

9 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार जी
    हकीकत बया करती
    सुंदर अभिव्यक्ति
    आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाये

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  2. यथार्थ का चित्रण करती संवेदनशील रचना ...

    होली की शुभकामनायें

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  3. आज के यथार्थ का बहुत जीवंत चित्रण...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  4. आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.

    सादर

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  5. हफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
    मगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.
    होली की हार्दिक शुभकामनायें.

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  6. एक कृषक के जीवन के संघर्ष को बहुत संवेदनशीलता के साथ बयान किया है ! बहुत हृदयग्राही कविता ! बहुत बहुत बधाई एवं होली की शुभकामनायें !

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  7. बेहद मर्मस्पर्शी हालात का चित्रण करती रचना…………आपको और आपके पूरे परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  8. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    जीवंत चित्रण आपको और आपके पूरे परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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