05 जून, 2010

बच्चा आज के बड़े शहर का

आज के युग में एक बड़े शहर में ,
सीमेंट, रेत लोहे से बने इस जंगल में,
रहने वाला बच्चा प्रकृति को नहीं जानता ,
रात में भय से छत पर नहीं जाता ,
यह सोच कर रोता है ,
चाँद तारे कहीं उस पर तो ना गिर जायेंगे !


आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

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  2. एक स्वाभाविक भय की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति !

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  3. क्या बात है...संवेदनशील रचना!

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  4. अभिनव

    अनुपम

    उम्दा रचना...........

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