27 अगस्त, 2012

नन्हीं बूंदे वर्षा की



टप टप टपकती
झरझर झरती
नन्हीं बूँदें वर्षा की
कभी फिसलतीं
या ठहर जातीं
वृक्षों के नव किसलयों पर
नाचती थिरकतीं
गातीं प्रभाती
करतीं संगत रश्मियों की
बिखेरतीं छटा
इंद्र धनुष की
हरी भरी अवनि
मखमली अहसास लिए  
ओढती चूनर धानी
हरीतिमा सब और दीखती
कण कण धरती का
भीग भीग जाता
स्वेद बिंदुओं सी
उभरतीं उस के
 मस्तक पर
ये नन्हीं जल की बूँदें
होती अद्वितीय
अदभुद आभा लिए
वह रूप उनका
 मन हरता
तन मन वर्षा में
भीग भीग जाता |
आशा


9 टिप्‍पणियां:

  1. . ये नन्हीं जल की बूँदें
    होती अद्वितीय
    अदभुद आभा लिए
    वह रूप उनका
    मन हरता
    तन मन वर्षा में
    भीग भीग जाता |
    बहुत सुन्दर बात कही है आपने आशा जी.बधाई तुम मुझको क्या दे पाओगे?

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  2. नन्हीं जल की बूँदॊं सी बहुत सुन्दर रचना ।

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  3. बहुत सुन्दर चित्र सी बेहतरीन रचना ! तस्वीरें भी उतनी ही मनमोहक हैं ! बहुत सुन्दर !

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  4. खूबसूरत शब्द और उसके अहसास

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