टप टप टपकती
झरझर झरती
नन्हीं बूँदें वर्षा की
कभी फिसलतीं
या ठहर जातीं
वृक्षों के नव किसलयों पर
गातीं प्रभाती
करतीं संगत रश्मियों की
बिखेरतीं छटा
इंद्र धनुष की
हरी भरी अवनि
मखमली अहसास लिए
ओढती चूनर धानी
हरीतिमा सब और दीखती
कण कण धरती का
भीग भीग जाता
स्वेद बिंदुओं सी
उभरतीं उस के
मस्तक पर
होती अद्वितीय
अदभुद आभा लिए
वह रूप उनका
मन हरता
तन मन वर्षा में
भीग भीग जाता |
आशा
सराबोर कर गयी बौछार ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएं. ये नन्हीं जल की बूँदें
जवाब देंहटाएंहोती अद्वितीय
अदभुद आभा लिए
वह रूप उनका
मन हरता
तन मन वर्षा में
भीग भीग जाता |
बहुत सुन्दर बात कही है आपने आशा जी.बधाई तुम मुझको क्या दे पाओगे?
wahh mann bhi bheeg gaya rachnaaaye padh kar
जवाब देंहटाएंनन्हीं जल की बूँदॊं सी बहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्र सी बेहतरीन रचना ! तस्वीरें भी उतनी ही मनमोहक हैं ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत शब्द और उसके अहसास
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी कविता
जवाब देंहटाएंसादर
pyara varsha geet
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