
वे चाहते नहीं बातें बनें
ना ही ऐसी वे बढ़ें
खिंचती जाएँ दीवारें दिल में
प्यार दिखाई ना पड़े |
हो सौहार्द और समन्वय
सभी हिलमिल कर रहें
सदभावपर जो भारी हो
कोइ फितरत ऐसी ना हो |
धर्म और भाषा विवाद को
तूल यदि दिया गया
दीवारें खिचती जाएँगी
दरारें भर ना पाएंगी |
आशा
ना ही ऐसी वे बढ़ें
खिंचती जाएँ दीवारें दिल में
प्यार दिखाई ना पड़े |
हो सौहार्द और समन्वय
सभी हिलमिल कर रहें
सदभावपर जो भारी हो
कोइ फितरत ऐसी ना हो |
धर्म और भाषा विवाद को
तूल यदि दिया गया
दीवारें खिचती जाएँगी
दरारें भर ना पाएंगी |
आशा
सही बात!!
जवाब देंहटाएंहर शब्द यथार्थपरक है और हर पंक्ति भावपूर्ण ! वास्तव में हम ना जाने कब भाषा और धर्म की कल्पित दीवारों को तोड़ कर मुक्त हो सकेंगे जो दिलों में सचमुच की दीवारें खड़ी कर रही हैं ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंयथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंयथार्थपरक रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंअधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंek dam sahi kaha
जवाब देंहटाएंlog nhi chahte k jung aur man mutav khatm ho
acchi rachna...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंहो सौहार्द और समन्वय ||
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई ||
बहुत बढि़या।
जवाब देंहटाएंप्रेम और भाईचारा का सार्थक सन्देश देती ....सुन्दर रचना
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