कभी चंचल चपल हिरनी जैसी
दौड़ती फिरती थी बागानों में
अब उसे देख मन में ईर्षा होती
क्यूँ न मैं ऐसी रही अब |
इतनी जीवन्त न हो पाई
बिस्तर पर पड़े पड़े मैंने
लम्बा समय काट दिया है
अब घबराहट होने लगती है |
और कितना समय रहा शेष
कैसे जान पाऊँ कोई मुझे बताए
क्या बीता समय लौट कर आएगा
मुझमें साहस का संचार होगा |
फिर से कब आत्म विश्वास जागेगा
पर शायद यह मेरी कल्पना है
कभी सच न हो पाएगी
जिन्दगी यूं ही गुजर जाएगी |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 22 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए आभार सर |
आत्मविश्वास और साहस की अनुभूति विचारों में होती है अपनी इच्छाशक्ति में होती है शरीर के किसी अंग विशेष में नहीं ! जब तक आत्मविश्वास है मनुष्य कोई भी जंग जीत सकता है ! निराशावादी रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंसाधना टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंवक़्त के साथ शरीर की ऊर्जा का क्षय होता है । फिर भी जिजीविषा स्फूर्ति प्रदान करती है । आपके स्वास्थ्य की कामना ।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंसमय के साथ परिवर्तन तो आते ही हैं।
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