हे इमली के पेड़
तुम्हारे स्वभाव में
इतनी खटास क्यूँ ?
क्या तुम कभी
मीठे हुए ही नहीं |
क्या तुम्हें मीठी बाते
पसंद नहीं आतीं
हर समय खटास
भरी रहती है
तुम्हारे मन में |
यहाँ तक कि
पत्तियाँ भी खट्टी
इतनी खटास क्यूँ ?
क्या कभी मीठे फल
चखे ही नहीं
या तुम्हारे दिल ने ही
स्वीकारे नहीं |
कभी तो मन तुम्हारा
भी
होता होगा
कि जो तुम्हें खाए
तारीफ करे अरे वाह
कितनी मीठी है इमली |
पर वह है स्वप्न
तुम्हारे लिए
ना कभी मीठे हुए
ना भविष्य में होगे
जैसे हो वैसे ही
रहोगे |
आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद आलोक जी |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद |
सपने सच्चे नाहींनहोते ,ये इमली के माध्यम से समझा दिया ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए संगीता जी |
बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |
सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए कुमार गौरव जी |
अच्छा तो है ! जो जैसा है उसे वैसा ही रहना चाहिए ना ! फ़िज़ूल की तारीफ़ के चक्कर में अपनी खासियतों को क्यों छोड़े कोई ! इमली मीठी हो गयी तो साम्भर और चटनी कैसे बनेगी ? हर चीज़ का अपना महत्त्व होता है !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंआपसे कोई विषय अछूता नहीं रहेगा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
Thanks for the comment
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