06 जनवरी, 2014

स्वप्न (क्षणिका )

शाम ढली निशा ने पैर पसारे
हम तब भी स्वप्नों से न हारे
 किसी न किसी में खोए रहे
सुबह कब हुई जान न पाए |
आशा

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