21 अक्टूबर, 2020

अब भूल समझ में आई

 


 

 तुम क्यूँ भूले 

वे बचपन की यादें 

जब साथ मिलकर 

खेलते खाते थे |

लंबित गृह कार्य

 किया करते थे

जब तक पूर्ण ना हो 

भूख प्यास  सब

 भूल जाते थे |

तब कितना प्रवल

 अवधान था 

प्रलोभन का

 नामों निशाँ न था |

तुम रोज अपना  काम करके 

मेरा गृह कार्य

 कर दिया करते थे 

तुम्हीं ने बिगाड़ी थी

 डाली थी आदत मेरी

  परजीवी हो जाने की |

खुद कार्य  करने की

 जरूरत न समझी कभी 

कभी आत्मनिर्भर हो न पाई 

किसी की बैसाखी सदा चाही 

ज़रा से काम के लिए ही |

अब भूल समझ में आई 

पर अब बहुत देर हो गई  है

अपना कार्य स्वयं  करने की

 आदत जो छूट गई है 

 अब पश्च्याताप से क्या लाभ 

 वे दिन लौट तो न पाएंगे |

आशा

 




12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 22 अक्टूबर अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए धन्यवाद सर |

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  2. उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना पर टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  4. सुप्रभात
    पोस्ट की सूचना के लिए आभार सर |

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  5. जब तू जागे तभी सवेरा ! सुन्दर रचना !

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  6. धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

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