09 मई, 2021

बेवजह बहस बाजी

 


कुछ कहा नहीं कुछ सूना नहीं  

फिर बहस बाजी  किस लिए

जिस बात से सारोकार नहीं

फिर बहस उसी पर क्यूँ   |

मन दुखी हो जाता है

 यह प्रवृत्ति देख कर

जिस रास्ते जाना नहीं  

उस ओर रुख क्यूँ ?

कोई सही निष्कर्ष नहीं निकल पाता

उलझनें  बढ़ती जातीं

कभी दूर नहीं होतीं

उन की संख्या बढ़ती भी है

 पर एक सीमा तक |

फिर भी मन में

कुछ बेचैनी शेष रह जाती है

पर  मन जरूर  हल्का हो जाता है  |

उसका पता पूंछने से लाभ क्या

मन को चोटिल कर् जाती वह बात

  जानने के बाद जिस पर अनावश्यक बहस हो

दूध का दूध पानी का पानी न हो |

  

आशा

 

 

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी बिल्कुल अनावश्यक बहस से मन दुखी होता है। और आपने सही कहा कि मन और दुखी हो जाता है जब अंत में पता चलता है कि उस बहस का कोई निष्कर्ष नहीं निकला।
    जीवन के कुछ क्रियाकलापों पर पुनः विचार करने के लिए प्रेरित करती यह रचना।

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  2. व्यर्थ की बहस की निरर्थकता को उजागर करती प्रेरक रचना ! बहुत सुन्दर !

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  3. धन्यवाद आपकाटिप्पणी के लिए

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