08 मई, 2021

शब्दों की आवश्यकता

 


 तब शब्दों की आवश्यकता नहीं थी  

मधुर गीत गाए थे गुनगुनाए थे

 मन में  भरा  था सुकून चिंता न थी

शब्द चहकते थे मुखारबिंद से |

हर बात का प्रभाव  मन में रहता था

 अब मन में जगह नहीं है

 किसी बात के लिए 

कभी हंसना कभी रोना 

 कौन सा जीने का है  ढंग  

जीवन नीरस हो जाता है

जब अकारण कोई हंसता रोता है |

सही वक्त पर प्रतिक्रया शोभा देती है

 किसी के कहने पर नहीं

कोई कार्य अवसर चूक जाने पर उचित नहीं 

भावों से दर्शाया जा सकता है

 मन में संचित विचारों को |

सफल व्यक्ति वही है जो मौन रह कर भी

अपना दिल खोल कर रख देता है  

अनकहा भी समझ लेता है |

मन से शब्द नहीं बोलते

 भाव सजग होते हैं  

जाग्रत  होते ही मन चाहा रूप ले लेते हैं

 शब्दों की आवश्यकता नहीं होती 

तब  संवाद में मीठा हो या कटु  

खुद को क्या कहना है जताने में |

आशा

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