मैं मानव हूँ दानव नहीं
सम्वेदनाओं से भरा हुआ हूँ
मुझे भी कष्ट होता है
किसी को व्यथित देख |
व्यथा का कारण जान
अनजान नहीं रह सकता
हल उसका खोज कर
कुछ तो सुकून दे ही सकता हूँ |
मेरी भूलों पर होता है
पश्च्याताप मुझे भी
दोष निवारण के लिए प्यार बांटता हूँ
सब से अलग नहीं हूँ |
मैं मनुज हूँ पाषाण नहीं
हर समस्या को समझता हूँ
निदान की कोशिश भी करता हूँ
हार मान नहीं सकता |
आशा
प्राण है तो अनुभूति होगी ही, संवेदनाएं होंगी ही।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 27 नवंबर नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहल उसका खोज कर
जवाब देंहटाएंकुछ तो सुकून दे ही सकता हूँ |
मेरी भूलों पर होता है
पश्च्याताप मुझे भी
दोष निवारण के लिए प्यार बांटता हूँ
सब से अलग नहीं हूँ ...
जीवन-दर्शन से परिपूर्ण बहुत सुंदर रचना !!!
हार्दिक बधाई!!!
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद शरद सिंह जी |
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद शांतनु जी |
टिप्पणी हेतु धन्यवाद शांतनु जी |
जवाब देंहटाएंअच्छे और सच्चे मानव की यही होती है पहचान ! सुन्दर रचना !
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