कोरोना आया बताए बिना
पंख फैलाकर उड़ा बिना पंख
मटियामेट कर गया जीवन को
सामान्य जन जीवन अस्तव्यस्त हुआ |
फिर लौट कर मुंह चिढाया
न कहा अलविदा फिर से हाबी हुआ
शायद जाने वाला मार्ग भूला |
महामारी जैसे शब्द से
अब तो नफरत सी हो गई है
पहले तो कभी सुना नहीं था
हाँ किताब में जरूर पढ़ा था |
है इसका इतना विकराल रूप
स्वप्न में भी कल्पना न थी
ऐसे दहशत भरे दिनों की
जाने कितने मरे सही आंकड़ा नहीं मालूम
शेष भोग रहे त्रासदी इस महामारी की |
प्रभू परीक्षा ले रहा धरती के निवासियों की
कितनी प्रगति की है चिकित्सा के क्षेत्र में
कोई निवारण का स्त्रोत खोजा नहीं है
केवल समाचार ही सुने वेक्सीन आने के |
आशा
वर्तमान को सचेत करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंमहामारी इसीको कहते हैं ! अनजान लोगों को अपनी विकरालता से परिचित करा रहा है कोरोना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंजी सत्य
जवाब देंहटाएंआंकड़े डराते हैं अब
धन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना देने के लिए आभार यशोदा जी |