एक से समाज नहीं बनाता
होता आवश्यक एक समूह
समान आचार विचारों वाला
सामंजस्य आपस में हो
तभी स्वप्न समाज का
हो सकता है सफल |
यूँ तो एक समूह भीड़ का भी होता
पर सोच होता सब का अलग
कोई कुछ सोचता दूसरा कुछ और
सभी राग अपना अलापते तालमेल से दूर |
समाज के कुछ नियम होते
जिन्हें पालन करना होता अनिवार्य
तभी स्वस्थ्य समाज का होता निर्माण
मनुष्य है उसका अभिन्न अंग |
आशा
समान आचार विचारों वाला
जवाब देंहटाएंसामंजस्य आपस में हो
तभी स्वप्न समाज का
हो सकता है सफल |
वास्तविकता
सादर
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सधु जी |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |
सार्थक सोच ! सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
समान आचार विचारों वाला सामंजस्य आपस में हो तभी स्वप्न समाज का हो सकता है सफल | --- बिलकुल सही कहा आपने | शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंसही कहा दी ...बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसही सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएं