जिन्दगी जी ली है भरपूर अब तक
कोई अरमा शेष नहीं
कोई ऐसा मार्ग खोजना है अब तो
जिसमें पहुँच कर ऐसी रमू
जिन्दगी के शेष दिन भी
जी भर कर भर पूर जियूं |
किसी की सेवा नहीं चाहती
किसी के एहसान तले दब कर
जीना नहीं मंजूर मुझे
अपने मन की मालिक रहूँ
कोई परिवर्तन नहीं स्वीकार मुझे |
प्रभु ने भी अस्वीकार की मेरी अर्जी
अभी तक बुलावा नहीं आया वहां से
इतने लोगों को स्थान मिला उस जहां में
मेरे पहुँचते ही दिखा बोर्ड “जगह नहीं है” का |
बहुत बेमन से निराश हो कर लौटी वहां से
तब से अभी तक वह बोर्ड हटा नहीं है
जीवन की गति धीमी भी हुई है
जीना दूभर हुआ अब तो |
आशा
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 23 नवंबर 2020 को 'इन दिनों ज़रूरी है दूसरों के काम आना' (चर्चा अंक-3894) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सर |
सुन्दर रचना, थोड़ी उदासी भी दिखी, ज़िन्दगी इसी का नाम है कभी धूप और कभी छांव - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी बहुत अच्छी लगी |टिप्पणी के लिए धन्यवाद शांतनु जी
मज़ा नहीं आया ! नकारात्मक भाव की रचनाएं कम पसंद आती हैं ! 'जगह नहीं है' का बोर्ड हट भी जाए तो 'पहले आप' का सलीका मान कर औरों के लिए रास्ता छोड़ देना चाहिए ! नज़रिया बदलें अपना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |मृत्यु द्वार से लौट कर आने पर अनुभाव कैसा रहा इसी का वर्णन किया है |क्या गलत किया है ?इसे नकारात्मक सोच कैसे कहा जाए |जो सच अनुभव किया वही लिखा है |
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