22 नवंबर, 2020

अंतिम समय की त्रासदी



                                                  जिन्दगी जी ली है भरपूर अब तक

 कोई अरमा शेष नहीं

कोई ऐसा मार्ग खोजना है अब तो

जिसमें पहुँच कर ऐसी रमू

 जिन्दगी के शेष दिन भी

जी भर कर  भर पूर जियूं |

किसी की सेवा नहीं चाहती

किसी के एहसान तले दब कर

 जीना नहीं   मंजूर मुझे

अपने मन की मालिक रहूँ

कोई  परिवर्तन नहीं स्वीकार मुझे |

प्रभु ने भी अस्वीकार की मेरी अर्जी

अभी तक बुलावा नहीं आया वहां से

इतने लोगों को स्थान  मिला उस जहां में

मेरे पहुँचते ही दिखा बोर्ड “जगह नहीं है” का |

बहुत बेमन से निराश हो कर  लौटी वहां से

तब से अभी तक वह बोर्ड हटा नहीं है

जीवन की गति धीमी भी हुई है

जीना दूभर  हुआ अब तो |

 

आशा

 

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 23 नवंबर 2020 को 'इन दिनों ज़रूरी है दूसरों के काम आना' (चर्चा अंक-3894) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. सुप्रभात
      मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सर |

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  2. सुन्दर रचना, थोड़ी उदासी भी दिखी, ज़िन्दगी इसी का नाम है कभी धूप और कभी छांव - - नमन सह।

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    1. सुप्रभात
      टिप्पणी बहुत अच्छी लगी |टिप्पणी के लिए धन्यवाद शांतनु जी

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  3. मज़ा नहीं आया ! नकारात्मक भाव की रचनाएं कम पसंद आती हैं ! 'जगह नहीं है' का बोर्ड हट भी जाए तो 'पहले आप' का सलीका मान कर औरों के लिए रास्ता छोड़ देना चाहिए ! नज़रिया बदलें अपना !

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  4. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |मृत्यु द्वार से लौट कर आने पर अनुभाव कैसा रहा इसी का वर्णन किया है |क्या गलत किया है ?इसे नकारात्मक सोच कैसे कहा जाए |जो सच अनुभव किया वही लिखा है |

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