13 फ़रवरी, 2011

केवल तेरे ही पास

मैं चाहता न था बंधना
किसी भी बंधन में
पर न जाने कहाँ से आई
तू मेरे जीवन में |
सिर्फ आती
तब भी ठीक था
क्यूँ तूने जगह बनाई
मेरे बेरंग जीवन में |
मुझे बांधा
अपने मोह पाश में
सांसारिकता के
बंधन में |
बंधन तोड़ नहीं पाता
जब भी प्रयत्न करता हूँ
और उलझता जाता हूँ
तेरे फैलाए जाल में |
है तू कौन मेरी ?
क्यों चाहती जी जान से मुझे
ऐसा है मुझ में क्या ?
मैं जानना चाहता हूँ |
जब भी सोचता हूँ
स्वतंत्र रहने की चाह
गलत लगने लगती है |
फिर सोचता हूँ
बापिस आ जाऊं
अपने कदम
आगे न बढ़ाऊं|
पर चला आता हूँ
केवल तेरे ही पास
तुझे उदास देख नहीं पाता
नयनों में छलकते प्यार को
नकार नहीं पाता
और डूब जाता हूँ
तेरे प्यार में |

आशा




13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना.....शुभकामनायें|

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  2. कोई किसी से प्यार करता है और फिर ज़माने की बेड़ियाँ, परंपरा और बाकी बंधनों से इंसान ऐसा बंध के रह जाता है की उसका वो प्यार दम तोड़ देता है..
    फिर वो ये सोचता है की काश मैं उससे प्यार किया ही न होता...तो कम से कम खुश तो रहता...वो आती नहीं मेरे जिंदगी में, तो कम से कम खुशी तो नहीं जाती..

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  3. तुझे उदास देख नहीं पाता
    नयनों में छलकते प्यार को
    नकार नहीं पाता
    और डूब जाता हूँ
    तेरे प्यार में |
    --
    सुन्दर रचना!
    प्रेम दिवस की बधाई!

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

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  5. जब भी प्रयत्न करता हूँ
    और उलझता जाता हूँ
    तेरे फैलाए जाल में |

    Bahut sateek varnan kiya hai apne...

    Makdi ka jaal sa sara sansaar hai
    chahu niklu , magar fasta jau...

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  6. कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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