16 फ़रवरी, 2011

कैसे भूलूं

कैसे भूलूं
था एक विशिष्ट दिन
जब दी आवाज नव जीवन ने
कच्ची मिट्टी थी
आ सिमटी माँ की गोद में
नए आकार में |
वह स्पर्श माँ का पहला
बड़े जतन से उठाना उसका
बाहों के झूले में आ
उसकी गर्मी का अहसास
बड़ा सुखद था
पर शब्द नहीं थे
व्यक्त करने के लिए |
प्रति उत्तर में थी
मीठी मधुर मुस्कान
उसकी ममता और दुलार
आज भी छिपा रखा है
अपनी यादों की धरोहर में |
झूले से उतर
चूं -चूं जूते पहन
धरती पर पहला कदम रखा
पकड़ उंगली चलना सीखा
अटपटी भाषा में
अपनी बात कहना सीखा
कैसे भूलूं उसे |
बचपन की अनगिनत यादें
सजी हुई हैं मन में |
गुड़ियों के संग खेल
बिताए वे पल कहाँ खो गए
कैसे खोजूं ?
था पहला दिन शाला का
इतनी दूर रहना माँ से
उसके प्यार भरे आंचल से
था कितना कठिन
कैसे भूलूं
छोटी सी बेबी कार
स्टेयरिंग पर हाथ
और चलते पैर पैडल पर
तेज होती गति देख
पीछे से काका की आवाज
बेबी साहब ज़रा धीरे
दृश्य है साकार आज भी
मन के दर्पण में
कितना अच्छा लगता है
वह समय याद करना |
शाला में आधी छुट्टी में
जाड़ों की कुनकुनी धूप में
रेत के ढेर पर खेलना
मिट्टी के घरोंदे बनाना
फूलों से उन्हें सजाना
बागड़ पर टहनियों की कतार
घर के आगे
बगीचे की कल्पना
आज भी भूल नहीं पाई |
था डर बस नक्कू सर की
स्केल की मार का
पर आस पास होता था
बस प्यार ही प्यार
कैसे भूलूं उन यादों को
सोचती हूँ वह समय
ठहर क्यूँ नहीं गया |

आशा






13 टिप्‍पणियां:

  1. मां के ममताभरे स्पर्श को तो ्भी भुलाया ही नहीं जा सकता!
    बहुत सुन्दर रचना!

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  2. कुछ यादें गहन छाप छोडती हैं मनः पटल पर -
    बहुत सुंदर रचना .

    जवाब देंहटाएं
  3. झूले से उतर
    चूं -चूं जूते पहन
    धरती पर पहला कदम रखा
    पकड़ उंगली चलना सीखा
    अटपटी भाषा में
    अपनी बात कहना सीखा
    कैसे भूलूं उसे |
    ....

    कैसे भूलूं उन यादों को
    सोचती हूँ वह समय
    ठहर क्यूँ नहीं गया |
    ...............thahra to hai aankhon mein , mann me aur aapki kalam me

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  4. वह स्पर्श माँ का पहला
    बड़े जतन से उठाना उसका
    बाहों के झूले में आ
    उसकी गर्मी का अहसास
    बड़ा सुखद था
    पर शब्द नहीं थे
    व्यक्त करने के लिए ...

    माँ की याद दिला दी आपने ...
    बेहतरीन अभिव्यक्ति
    आभा

    .

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  5. मन को छू गयी!.....मन को भिगो गयी ..बहुत अच्छी लगी यह भावपूर्ण रचना .
    'मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से '

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  6. सोचती हूँ वह समय
    ठहर क्यूँ नहीं गया
    samay kahan thaharta,han yaden zaroor thahar jatin hain...

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  7. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना ! आपकी रचना के माध्यम से स्मृति वीथिका के ना जाने कितने दृश्य मन में साकार हो उठे ! एक सशक्त और कोमल रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  8. हर बच्चे को बड़े होने की जल्दी होती है मगर बड़ा होने पर पता चलता है की जीवन के सुमधुर पल यही थे !
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

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  9. आदरणीय आशा दी ,
    आपकी इन पन्क्तियों ने एक साथ ही मेरी मां और मेरे बच्चो दोनो की
    तस्वीर मेरी आंखॊ में ला दी हैं । आभार !

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  10. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार
    सशक्त और ...भावपूर्ण रचना !

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  11. गहन छाप छोडती हैं...कुछ यादें ..सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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