जब कि हूँ तुम्हारी अनुगामिनी
तुममें मुझमें है अंतर
तुम स्नेह की महिमा बिसरा बैठे |
मैं स्नेह के साथ भी बंधी हूँ
यह तुमने न जाना
स्नेह के बिना
खुद को अधूरा पाया मैंने |
उसने वह कार्य किया
जिसकी सदा रही अपेक्षा मुझे
स्नेह सेतु बंध का कार्य
पूर्ण निष्ठा से करता |
उसके बिना खुद को अकेला पा
कुछ कर न पाती
वायु का सहयोग भी रहा
नितांत आवश्यक
हम दौनों के संगम में|
वह यदि कुपित होती
कभी साथ न देती
वायु का बेग जागृत
न होने देता हमें
उजाला कैसे होता |
सब एक दूसरे से
जब सहयोग करते
तभी सफल हो पाते
फिर भी तम
तुम्हारे नीचे रह ही जाता |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंआलोक जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
सुंदर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंओंकार जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
वाह ! बहुत सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |