नैना छलके
अश्रु बहने लगे द्रुत गति से
मन को लगी ठेस
उसके वार से|
कभी न सोचा था
किसी से प्यार किया
तब क्या होगा |
जब भी स्वीकृति चाही
मन की चाहत गहराई
इन्तजार में
जवाब नहीं पाया|
कारण जानना चाहा
ना में जवाब पाया
मन विब्हल हुआ
नैना छलके
अश्रु बह निकले
द्रुत गति से|
फिर से उफने हैं
बहती नदिया की
लहरों की तरह
खोज रहा हूँ कारण|
उसके इनकार का
और अधिक बलवती
हुई है चाहत
प्यार के इजहार की |
आशा
धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-10-21) को "गीत-ग़ज़लों का तराना, गा रही दीपावली" (चर्चा अंक4233) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
सुप्रभात
हटाएंआभार कामिनी जी मेरी रचना को स्थान देने की सूचना के लिए |
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद सुजाता जी टिप्पणी के लिए |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआलोक जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
भावुक रचना ! अति सुन्दर !
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