स्वप्न भरे मस्तिष्क में होता जमाव ऐस
व्यस्त हो जाती उनकाअर्थ निकालने में
किसी हद तक पहुँच भी जाती
अर्थों का
सार निकालने में |
जो मुझे पसंद आते उनको समेट लेती
अपने मन के किसी कौने में
किसी को भी जानने नहीं देती
मेरे मस्तिष्क में क्या चल रहा है
इससे मुझे लाभ होगा या हानि |
या कुछ भी प्राप्त नहीं होगा
बिना किसी की सही सलाह के
या अपने तक ही सीमित होती
सीधी राह चल कर बहुत कुछ हाँसिल करती
अपनी बुद्धि को स्वच्छ और परिमार्जित रखती |
यही चाह थी मेरी जिससे मैंने बहुत कुछ सीखा
अपने को संतुलित किये रहती कभी धेर्य नहीं खोती
यही सीखा है मैंने किसी कार्य की जल्दी नहीं की
मुझे आत्मनिर्भरता से बहुत बल मिलता |
किसी की गरज करनी नहीं पड़ती
अपना सोचा किया किसी पर नहीं थोपा
नाही किसी पर आश्रित रही स्वयं पर ही हुई निर्भर
यही हल निकाला मैंने स्वप्नों के संग्रह से |
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
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