ताका झांकी पेड़ों से
तारों से गलबहियां होती
चांदनी चंचल बहकती |
तब भी मन नहीं भरता
सोचता किसे चुने
झील नदी या ताल
या समुंदर की लहरों को |
जुही रात में महकती
नवोढ़ा श्रृंगार करती
राह में पलकें बिछाए
पर होती निगाहें रीती |
चाँद तो आया भी
पर वे न आये
रात बीती सारी
यूं ही राह देखते |
प्रश्न उठा मन में
चाँद
क्यूं लगता अपना
वे रहे पराये
उसे अपना न पाए |
आशा
बहुत अच्छी प्रस्तुती...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद करुणाजी |
हटाएंबढ़िया रचना व लेखन , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ सच्चा साथी ~ ) - { Inspiring stories -part - 6 }
~ ज़िन्दगी मेरे साथ -बोलो बिंदास ! ~( एक ऐसा ब्लॉग जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता हैं )
पुस्तकों का पूरा सेट कहाँ मिल्पाएगा और कितने रूपए में ?
हटाएंआशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-04-2014) को ""मन की बात" (चर्चा मंच-1594) (चर्चा मंच-1587) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु धन्यवाद सर |
हटाएंअनुराग की अनुपम भावना से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना जी |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मोनिका जी |
हटाएंखूबसूरत कथ्य...
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वसंत जी |
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