18 अगस्त, 2021

बन्धनो न्मुक्त आनंद


 खुले न बंधन तुम्हारे हाथों के

देख रहा हूँ  मैं

बेड़ियों से भी दूरी नहीं है

समझ रहा हूँ मैं |

जब तक बंधन मुक्त न होगी

तुम कैसे जी पाओगी

उन्मुक्त हो समाज में विचरण

 कैसे कर पाओगी |

खुद का अस्तित्व कैसे खोजोगी 

 पराधीनता में घुट कर जियोगी

मुस्कान का मुखौटा लगा चहरे पर

चह्कोगी नकली व्यबहार करोगी |

अस्तित्व  खोज अधूरी रही यदि

 आगे कैसे बढ़ पाओगी    

क्या रखा है ऐसे बंधनों में

कि तुम्हारा  वजूद ही खो जाए |

 उन्मुक्त जीवन से बड़ा क्या है

अनावश्यक बंधन देते त्रास

नियम समाज के बिना सोचे

 अपनाने में है आनंद क्या   |

इस दुनिया में आते ही  

वर्जनाओं की झड़ी लग जाती

सब समाज का अपना क्या है

आज तक जान नहीं पाया   |

विपरीत परिस्थिति में 

तुम्हें अपनया  है 

पर तुम्हारे लिए कुछ कर न पाया 

है बड़ा संताप मुझे |

आशा 

 

 

 

 

   

 

 

16 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया रचना है ! लेकिन जिसने विवाह के बंधन में बाँधा है वही उसे आगे बढ़ने के लिए रास्ता दिखा सकता है, उड़ने के लिए आसमान दे सकता है ! वह खुद ही उसे सलाह दे रहा है तो चिंता किस बात की !

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    1. सुप्रभात
      धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  2. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी केलिए |

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-08-2021को चर्चा – 4,161 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      आभार दिलवाग जी चर्चामंच पर मेरी रचना की सूचना के लिए |

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 अगस्त 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. सुप्रभात
      आभार रवीन्द्र जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए आज के अंक में |

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  5. सुप्रभात
    धन्यवाद ड़ा. शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |

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  6. सुंदर रचना ! पर अपना कर भी क्यों कुछ नहीं कर पाया

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  7. एक सीधी सरल किंतु गहरी कविता है। सादर।

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