दिन में सपने सजाए
बड़े अरमान से
कल्पना में भी उड़ी व्योम में
कोई कमी न रही |
ऐसा मैंने सोचा था
खुद को अधिक ही
सोच लिया था
यहाँ मैं गलत थी |
यह तो स्पष्ट हुआ
स्वयं के आकलन से
भूल इतनी बड़ी
कैसे हो गई |
सोचने को विवश हुई
मैंने सही आकलन न किया
खुद को समझा अधिक
सही हल न निकाला |
सोच कर जब देखा
खुद की भूल समझआई
उसे कैसे सुधारूं
आज तक जान नहीं पाई |
मैंने जान लिया है
अब खुद की भूल को
सुधार लिया है |
आशा
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ! स्वयं की भूल को समझ लेना और फिर सुधार लेना सबसे बड़ी जीत है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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