21 अगस्त, 2021

रक्षा बंधन


      इंतज़ार आज है  रक्षा बंधन का 

बंधन राखी का भार कभी न था     

मन में सदा रहा सम्मान उसका

भाई बहन के अंतस  में |

जब बहना ससुराल गई पहली बार

बेचैन हुआ भाई का मन

भेजा तार  कब आओगी

मैं लेने आऊँ या आजाओगी |

जब तक बात पक्की न हुई

 ख्यालों का भण्डार भरता रहा

अब तक न समाचार ही आया न राखी

मन की  तैयारी खाने लगी हिचकोले |

मन का विश्वास तब भी न  डगमगाया

इन्तजार में सारा दिन बीता

फिर बुरे ख्यालों ने घेरा

रात  कटी तारे गिन गिन

सुबह जब उठा बहिन को समक्ष पा

 दिया धन्यवाद प्रभु को |

घुली मिठास घेवर मिठाई में उस के आने से

बहार  घर में लौट आई बहिन के आने से

बड़ी राखी की जिद्द अब तक न भूला था 

बड़ी राखी का भूत न उतरा  था सर  से|

आशा  

 

 

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    आभार कामिनी जी मेरी रचना की सूचना के लिए आज के अंक में |

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  2. सही है ! बड़ी वाली गोटे सितारों से चमचमाती राखी की ही डिमांड रहती थी उन दिनों ! और नेग के रुपयों की भी मीठी तकरार हुआ करती थी ! कितने सुन्दर दिन थे ! बहुत प्यारी रचना !

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