चाहत उड़ने की
उसे उत्साहित करती
तमन्ना होती जाग्रत
रात भर स्वप्न देखती |
होते रंगीन पंख तितली जैसे
आसपास लग जाते बाहों के
वह तितली सी उड़ना तो चाहती
पर व्यवधान पसंद न आता उसे |
सारा आसमान हो उसका
कोई सांझा नहीं कर सकता
पर यह तो न्याय नहीं
शेष सब कहाँ जाएंगे
यह नहीं सोचा उसने |
यही सोच उसका
उड़ने में बाधक होता
जब भी कोशिश करती
कोई न कोई वहां होता |
वह मन मार कर रह जाती
उसकी चाहत
कभी भी पूरी न हो पाती
सोच उसे कभी भी
आगे न आने देता
जहां खड़ी होती थी
वहीं सिमट कर रह जाती थी |
मन को झटका लगता
सोचती उसमें क्या कमी थी
जो उसे आगे न आने देती थी
उसके पैर बाँध लेती थी |
दिल उदार होना चाहिए
केवल अपना ही सोचे दूसरों का नहीं
वह ईश्वर की नजरों से बच नहीं पाता
यही आगे बढ़ने में बाधक होता |
आशा
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
सुंदर रचना ! खुद आगे बढ़ने के लिये दूसरे को पीछे ढकेलना ज़रूरी नहीं ! आसमान बहुत बड़ा है उसमें सब एक साथ उड़ सकते हैं !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |