06 दिसंबर, 2021

चाहत उड़ने की


 

चाहत उड़ने की

 उसे उत्साहित करती

तमन्ना होती जाग्रत

रात भर स्वप्न देखती |

 होते  रंगीन पंख तितली जैसे  

 आसपास लग जाते बाहों के

वह तितली सी उड़ना तो चाहती  

पर व्यवधान पसंद न आता उसे |

सारा आसमान हो उसका

कोई सांझा नहीं कर सकता

पर यह तो न्याय नहीं 

शेष सब कहाँ जाएंगे

यह नहीं सोचा उसने |

यही सोच उसका

 उड़ने में बाधक होता

जब भी कोशिश करती  

 कोई न कोई वहां होता |

वह मन मार कर रह जाती

उसकी चाहत

कभी  भी पूरी न हो पाती 

 सोच उसे कभी भी

आगे न आने देता

जहां खड़ी होती  थी

वहीं सिमट  कर रह जाती थी |

मन को झटका लगता

सोचती उसमें क्या कमी थी

जो उसे आगे न आने देती थी

 उसके पैर बाँध लेती थी |

दिल उदार होना चाहिए

केवल अपना ही सोचे दूसरों का नहीं

वह ईश्वर की नजरों से बच नहीं पाता

यही आगे बढ़ने में बाधक होता |

आशा 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

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  2. सुंदर रचना ! खुद आगे बढ़ने के लिये दूसरे को पीछे ढकेलना ज़रूरी नहीं ! आसमान बहुत बड़ा है उसमें सब एक साथ उड़ सकते हैं !

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