11 दिसंबर, 2021

जीवन एक कठिन पहेली सा


 

कंगन डोरी  हाथों की  छूटी नहीं कि

 गृहस्ती का कार्य प्रारम्भ किया

तब से अब तक एक लम्हां भी नहीं

मिला सांस लेने को |

हाथों की मेंहदी फीकी पड़ी न थी

 ढेर झूठे बर्तनों का देख रहा राह मेरी

भरी आँखों से देखा यह मंजर

 हाय रे मेरी  किस्मत |

आज तक विश्राम के दो पल न मिले

तुम से मन की बातें करने को  

है यह कैसा न्याय प्रभु  

क्या मैं ही मिली थी सब अनुभवों के लिए ?

जीवन की एक  समस्या जब तक निपटती

दूसरी हाथ फैलाए  खड़ी होती

अभी तक अपने लिए चैन की

 श्वास  लेने का भी समय न मिला |

कोई स्वाद नहीं रहा मुंह में  कसेला सा हो गया

 क्या लाभ बीते कल पर दृष्टिपात का

अब वह लौट कर न आएगा

काल का पहिया आगे बढ़ता जाएगा

मन का क्लेश बढ़ा कर ही जाएगा |

जीवन है  एक कठिन  पहेली सा 

 जिसका  हल न मिला अब तक 

अंतिम समय आने तक   

खुद का अस्तित्व  ही भूल जाएगा |

आशा 


17 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-12-21) को अपने दिल के द्वार खोल दो"(चर्चा अंक4276)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. सुप्रभात
      आभार कामिनी जी मेरी रचना की सूचना के लिए |

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  3. हर आम गृहणी की कहानी ! बहुत सुंदर

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  4. हाथ में काम हो, मन में विश्राम हो और हृदय में राम हो, यही तो वास्तविक जीवन जीने की कला है

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  5. सही कहा आपने एक समस्या निपटाओं कि दूसरी खड़ी मिलती है...
    बहुत लाजवाब वर्णन

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    1. सुप्रभात
      धन्यवाद प्रीती जी टिप्पणी के लिए |

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  6. बहुत सुंदर प्रेरणादायक सृजन

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    1. सुप्रभात
      धन्यवाद भारती जी टिप्पणी के लिए |

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