13 दिसंबर, 2021

महामारी की दहशत


 

संजीवनी बूटी कोई न होती

 समय लगता बारम्बार 

बीमारी से बच  कर निकलने में 

  दवाई का प्रभाव  देखने में |

वह कोई जादू की पुड़िया तो नहीं

कि बुखार भाग जाएगा

उसको देखते ही

 छूमंतर हो जाएगा |

इस दवा का असर तो होता

पर समय बहुत लेता

फिर भी पूर्ण स्वस्थ न हो पाता 

इन सब से उलझनें बढ़ती ही हैं|

दिन रात एक ही रट रहती

दवा से कोई लाभ न हुआ

कोई दूसरी दवा  लाओ

 इसका हल निकालो |

इस महामारी से

 जीवन में सुकून का ह्रास हुआ है

जितनी भी सतर्कता रखी

बीमारी का रूप और भयावय होता गया |

बारम्बार एक ही विचार

मन में कौंधता रहा  

क्या पहले ऐसी बीमारी की

 कोई जगह न थी जन जीवन में |

बीमारी तब भी होतीं थीं 

 लोग भी परम धाम जाते  थे पर

इतना महिमा मंडन किसी बीमारी का

 कभी न होता  था |

 अब तो महामारी की चर्चा से भी

  मन उचटने लगा है

अनजानी दहशत से

मन में विद्रुप भरा है |

विकट समस्या है ऎसी  कि

 थमने का नाम नहीं लेती

जितना भी सोचो

 उलझन बढ़ती ही जाती  |

आशा   

 

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सच है ! आजकल डर के साये में ही इंसान रहने लगा है ! अब ज़रा सी हरारत हो जाए, खाँसी ज़ुकाम हो जाए चिंता हो जाती है कहीं कोरोना तो नहीं है ! पहले बड़ी से बड़ी तकलीफ से कोई डर नहीं लगता था !

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(14-12-21) को "काशी"(चर्चा अंक428)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. सुप्रभात
    धन्यवाद कामिनी जी मेरी रचना की सूचना के लिए |

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