21 दिसंबर, 2018

हाईकू


प्यास न बुझी
खड़ीनिहार रही
खारे जल को
अपार जल 
सागर लबालब
फिर भी खारा
सुकून नहीं
सुबह दोपहर 
एक ही राग
भारी मन से
किया गिला शिकवा
बैर न मिटा
मन में छिपी
यादों की बारातें हैं
हैं सर्द रातें

 मौसम ठंडा 
एक प्याली चाय की 
मन में ऊर्जा

 अकेला नहीं
सर्दी बढाता जाता
 बेग वायु का

सर्द हवा का 
होता जब प्रकोप
पत्ता कांपता


आज ये हाल 
संवेदना है आहात
स्वतंत्र नहीं

जलती ज्वाला
दे रही है बिदाई
बीते कल को

आशा
आशा

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