जब हो आचरण ऐसा कि
पद चिन्हों पर चल कर जिसके
गर्व होने लगे श्रद्धा में सर
झुके
सब कहें किसके अनुयाई हो |
बात यही आकर्षित करती सब को
पहले जानकारी लेते अनुयाइयोँ से
फिर दिल की इच्छा जानना चाहते
स्वीकृति मिलती तभी कदम आगे बढ़ाते |
गुरू चुनते बहुत छानबीन कर
यह खेल नहीं है आज जिसे चुना
मन को रास नहीं आया तो बदल लिया
पानी पीजे छान कर गुरू कीजे जान कर |
सच्चा गुरू यदि मिल जाए
उसके ही पद चिन्हों पर चल कर
यह जिन्दगी सफल हो जाए
कहावत पूरी सत्य हो जाए |
हो व्यक्तित्व ऐसा कि हो प्रकांड पंडित
मुख मंडल से तेज टपकता हो
हो वाणी ऐसी मन मोहक
कि मन मन्त्र मुग्ध हो जाए |
छल छिद्र से दूर प्रभु भक्ति में लीन
उसके ही पद चिन्हों पर चल कर
दुनिया के प्रपंचों से दूरी रहेगी
गुरू शिष्य परम्परा का उदाहरण रहेगी |
आशा
बहुत बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्मिता टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंआसा का संचार करती सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर सार्थक रचना ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसूचना हतु आभार मीना जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सराहनीय बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 03 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएं